हिंदू धर्म के अनकहे रहस्य - जानें परशुराम कौन थे

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भगवान विष्णु के छठे आवेश अवतार परशुराम का जन्म सतयुग और त्रेता के संधिकाल में 5142 वि.पू. वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर प्रदोष काल में हुआ था.

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वहीं बता दे कि मध्यप्रदेश के इंदौर के पास स्थित महू से कुछ ही दूरी पर स्थित है जानापाव की पहाड़ी पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था.

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त्रैतायुग से द्वापर युग तक परशुराम के लाखों शिष्य थे. वहीं बता दे कि शस्त्र एवं शास्त्र के धनी ॠषि परशुराम का जीवन विवादों और संघर्ष से भरा हुआ रहा है.

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परशुराम के समय में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार था. हैहयवंशियों का राजा सहस्रबाहु अर्जुन भार्गव आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था। एक समय सहस्रबाहु के पुत्रों ने परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया.

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इस घटना ने परशुराम को काफी क्रोधित कर दिया और परशुराम ने संकल्प लिया कि - मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूंगा.

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हैहयवंशियों के राज्य की राजधानी महिष्मती नगरी थी जिसे आज महेश्वर कहते हैं. परशुराम ने अपने पिता के वध के बाद भार्गवों को संगठित किया और सरस्वती नदी के तट पर भूतेश्‍वर शिव तथा महर्षि अगस्त्य मुनि की तपस्या कर अजेय 41 आयुध दिव्य रथ प्राप्त किए साथ ही शिव द्वारा प्राप्त परशु को अभिमंत्रित किया.

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भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं. उन्हें राम के काल में भी देखा गया और कृष्ण के काल में भी. उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था. 

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कहा जाता कि है वे कलिकाल के अंत में उपस्थित होंगे. ऐसा माना जाता है कि वे कल्प के अंत तक धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे. पौराणिक कथा में वर्णित है कि महेंद्रगिरि पर्वत भगवान परशुराम की तप की जगह थी और अंतत: वह उसी पर्वत पर कल्पांत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए थे.

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